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कविता

नाखत्म सूची

रति सक्सेना


अकसर रात को सोने से पहले
मेरे दिमाग की डायरी में खुल जाता है
एक पन्ना, ना खत्म होने वाली काम सूची का
मैं पिछली ना खत्म हुए कामों की सूची में
एक आध का इजाफा कर
दिमाग को सलाह देती हूँ
बस बहुत हुआ साहिब, अब सोया जाये

अकसर ना खत्म होने वाले काम
चील बन रात भर मेरे सपनों के ऊपर मंडराते रहते हैं

लेकिन सुबह मेरे लिये सपाटचट आती है,
सूची में लिखी चीजें अक्सर धुँधली बन जाती हैं
यदि एक आध याद भी रहीं तो
किसी ना किसी काम से टल जाती हैं

कमबख्त रात, फिर खोल देती है
दिमाग की डायरी, नाखत्म कामों की सूची का पन्ना
और सपनों पर मंडराती चीलें

 


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